तिल के दानों को आग में फेंकना और पापों को जलाना

क्या मसीही ईश-विज्ञान सर्दियों में आने वाले सिक्ख त्यौहार लोहड़ी में की जाने वाली प्रार्थना द्वारा सुझाई गई मान्यताओं के साथ पूर्ण सहमति में है?

Residents throw sweets, peanuts, puffed rice, and popcorn into a bonfire during the Lohri celebrations in Rajpura.

Residents throw sweets, peanuts, puffed rice, and popcorn into a bonfire during the Lohri celebrations in Rajpura.

Christianity Today January 13, 2024
Saqib Majeed / SOPA Images / AP Images

[Read this article in English]

भारत और पूरे संसार में, सर्दी के ऋतु में, सिक्ख और हिंदू लोहड़ी के पंजाबी त्यौहार के दौरान सर्दियों की फसल के लिए अपने देवताओं का धन्यवाद करते हैं। पश्चिमी देशों के त्यौहार हैलोवीन की तरह, बच्चे घर-घर जाकर लोक गीत गाते हैं और लोहड़ी या “लूट” की मांग करते हैं। इसके बदले में, पड़ोसी उन्हें पैसे या खान-पान की चीजें जैसे तिल की मिठाई यानी तिलकुट, गुड़, पॉपकॉर्न, मुरमुरे और मूंगफली इत्यादि देते हैं। क्योंकि लोहड़ी की छुट्टी की तिथि विक्रमी (एक प्राचीन हिंदू) पंचांग के अनुसार आती है, इसलिए लोहड़ी 13 या 14 जनवरी के दिन आती है।

लोहड़ी की रात, परिवार के सदस्य, मित्रगण और रिश्तेदार पारंपरिक पंजाबी पोशाक में अलाव के चारों ओर इकट्ठा होते हैं और बच्चों की लूट में से एक छोटे हिस्से को अग्नि देवता के लिए भेंट में चढ़ाते हैं। सभी लोग एक साथ आग के चारों ओर नाचते हुए चलते, तिल के दानों को आग में फेंकते है और पंजाबी में जोर से प्रार्थना करते हैं, “आदर आए दिलाथेर जाए (सम्मान आए और गरीबी चली जाए)” और “तिल सड़े, पाप सड़े/झड़े” (जैसे तिल जलता है, इस प्रकार हमारे पाप जल जाएँ/खत्म हो जाएँ)। उत्सव छुट्टी सम्बन्धी पारंपरिक भोजन खाने, लोक नृत्य करने और लोक गीत गाकर समाप्त होता है।

सिक्ख धर्म की स्थापना 1500 के आसपास गुरु नानक (1469-1539) द्वारा की गई थी और इसके बाद के नौ गुरुओं ने सिक्ख समाज और सिक्ख धर्म को विकसित किया। गुरु-गद्दी में पाँचवें स्थान पर आने वाले गुरु अर्जन ने आदि ग्रंथ का संकलन किया, जो सिक्ख धर्म ग्रंथ की पहली अधिकृत पुस्तक है। सिक्ख मानते हैं कि केवल एक ही ईश्वर है, जो कि लिंग रहित और शाश्वतकालीन है, और वे इस ईश्वर को वाहेगुरु (अद्भुत शिक्षक) के रूप में संदर्भित करते हैं। सिक्ख पुनर्जन्म और कर्म सिद्धान्त में भी विश्वास रखते हैं।

जो सच्चे गुरु [ईश्वर] की सेवा नहीं करते हैं और जो शबद [सिक्ख शास्त्र] के वचन पर विचार नहीं करते हैं – आत्मिक ज्ञान उनके मनों में प्रवेश नहीं करता है; वे संसार में मृत शरीरों के समान हैं। वे 84 लाख योनियों के चक्र से गुजरते हैं, और वे मृत्यु और पुनर्जन्म के द्वारा नष्ट हो जाते हैं। – गुरु ग्रंथ साहिब पृष्ठ 88

सिक्ख भारत की 1.4 अरब आबादी का 1.7 प्रतिशत हैं, और वे पूरे भारत में फैले हुए हैं, जबकि पंजाब, चंडीगढ़, हरियाणा और अन्य आस-पास के क्षेत्रों में ये अपने उच्चतम प्रतिशत में पाए जाते हैं। भारत के बाहर, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया और मलेशिया में सिक्ख समुदाय की महत्वपूर्ण मौजूदगी है।

क्या सिक्खों और मसीही विश्वासियों में पाप और क्षमा के बारे में मान्यताएँ परस्पर रूप से सहमति में हैं? क्रिश्चियेनीटी टुडे के दक्षिण एशियाई संवाददाता ने एक सिक्ख अगुवे के साथ उनके धर्मग्रंथों के अनुसार पाप के प्रति उनकी समझ के बारे में बातचीत की और समझने की कोशिश की कि “हमारे पाप जले/खत्म हुए” की प्रार्थना को कैसे समझा जाए।

क्रिश्चियेनीटी टुडे ने पंजाबी-पृष्ठभूमि से आने वाले तीन पास्टरों से भी बात की, जिनमें से दो मसीह विश्वास में मन-परिवर्तित होने से पहले सिक्ख पैदा हुए थे। तीनों ने अपने जीवन में किसी समय लोहड़ी के त्यौहार को मनाया है, और उन्होंने समझाया कि कैसे सिक्ख समाज में पाप की धारणा के प्रति उनका अनुभव मसीह विश्वास में पाप की धारणा से भिन्न है।

देविंदर पाल सिंह, निदेशक, सेंटर फॉर अंडरस्टैंडिंग सिखिज्म, मिसिसॉगा, ओंटारियो, कनाडा।

मेरी राय में, पंजाबी अभिव्यक्ति तिल सड़े, पाप सड़े/झड़े (“जैसे तिल जलता है, इस प्रकार हमारे पाप जल सकते हैं/खत्म हो सकते हैं”) सांस्कृतिक भावनाओं में निहित केवल स्वयं की इच्छा वाली सोच है। इसका सिक्ख धर्म की शास्त्रीय समझ से कोई लेनदेन नहीं है। इसलिए, यहाँ तक कि लोहड़ी का भी सिक्ख धर्म में कोई लेना देना नहीं है क्योंकि सिक्ख सूर्य या अग्नि की पूजा नहीं करते हैं। इसके बजाय, लोहड़ी आमतौर पर सिखों द्वारा मनाई जाती है क्योंकि इसका पंजाबी संस्कृति से गहरा सम्बन्ध है।

सिक्ख धर्म में, सभी पापों को एक व्यक्ति के अहंकार और बुरे आवेगों और इच्छाओं में निहित माना जाता है। सिक्ख धर्म जानबूझकर “हुकम” (“ईश्वरीय विधान” के लिए पंजाबी शब्द) का पालन न करना, या नैतिक कानून नैतिक कानून की अवहेलना करने को पाप मानता है।

पापों का प्रायश्चित केवल परमेश्वर पर ध्यान लगाने से और उसके साथ एक हो जाने की कोशिश से ही प्राप्त किया जा सकता है। सिक्ख धर्म के संस्थापक, गुरु नानक देव के अनुसार, “जब किसी की बुद्धि पाप से दूषित या मैली हो जाती है, तो इसे केवल ईश्वर के प्रेम से ही शुद्ध किया जा सकता है।”

आरम्भिक सिक्ख स्रोत प्रायश्चित (कफ़्फारा) के अन्य रूपों के बारे में कुछ नहीं कहते हैं कि, पापी या अपराधी को उस समाज में बने रहने के लिए करने पड़ते हैं, जिससे वह संबंधित था। प्रायश्चित की अवधारणा पूरे सिक्ख इतिहास में विकसित होती रही और इसे [सबसे पहले] गुरु गोबिंद सिंह जी, दसवें सिक्ख गुरु द्वारा उसकी खालसा (उनके द्वारा शुरू किए गए योद्धाओं के धार्मिक सम्प्रदाय) के लिए आदेशों के रूप में कलमबद्ध किया गया था।

इन आदेशों को 18वीं और 20वीं शताब्दी में संशोधित किया गया था और आज यह मुख्य रूप से व्यक्ति और उन विभिन्न तरीकों पर केंद्रित है, जिसमें एक सिक्ख को एक अच्छे, पाप न करने वाला सिक्ख के रूप में व्यवहार करना चाहिए।

सिक्ख धर्म में, प्रायश्चित को संक्षेप में समुदाय में दिखाया गया है और इसमें सेवा शामिल होनी चाहिए।

इसके अपवाद चार प्रमुख पाप हैं: हुक्का (धूम्रपान तम्बाकू और अन्य सभी नशीले पदार्थों का उपयोग करना), हजामत (बालों को कटाना), हलालो (मांस खाना), और हराम (शादी के बाहर व्यभिचार और यौन संबंध)। इनका उल्लंघन करने पर अपराधी को समुदाय में आने के लिए पुन: दीक्षा की आवश्यकता हो सकती है।

रिचर्ड हॉवेल, पीएचडी (मसीही ईश-विज्ञान) और कालेब संस्थान, दिल्ली के प्रिंसिपल। इनका जन्म और पालन-पोषण पंजाब में हुआ और इन्होंने अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा वहाँ सुसमाचार का प्रचार करने में बिताया है।

सिक्ख धर्म कर्म को एक व्यक्ति के अस्तित्व के अच्छे और बुरे कार्यों के योग के रूप में परिभाषित करता है जो कि एक व्यक्ति के भविष्य को प्रभावित करता है। यह एक “ऊर्ध्वाधर” संबंध नहीं है, इसलिए एक व्यक्ति का पाप एक पवित्र परमेश्वर के विरुद्ध नहीं है, परन्तु यह “क्षैतिज” है, जिसमें यह अन्य लोगों और स्वयं से संबंधित है। अत: इसके कैसे परिणाम निकलते हैं। कर्म यह निर्धारित करता है कि अगले जन्म में उस व्यक्ति की आत्मा के साथ क्या होता है, चाहे वह सीढ़ी से ऊपर जाए या नीचे। पुर्नजन्म (मृत्यु के बाद एक व्यक्ति की आत्मा का एक शरीर से दूसरे शरीर में जाना) में आगे बढ़ने के लिए, एक व्यक्ति के अच्छे कर्मों को बुरे कर्मों से अधिक होना चाहिए।

लोहड़ी की परम्परा में आग के चारों ओर घूमने और “तिल सड़े, पाप सड़े/झड़े” शब्द बोलना परम्परा अपराधबोध की मौजूदगी के प्रमाण की ओर इशारा कर सकती है। आग में तिल के दानों को जलाना, एक ओर, अगींकार और अहसास की एक प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति हो सकती है कि आपने कुछ गलत किया है, लेकिन दूसरी ओर, यह केवल अच्छे कर्मों को बढ़ाने का कार्य हो सकता है।

मसीही विश्वास में, पाप को न केवल अज्ञानता के रूप में समझा जाता है बल्कि यह भी समझा जाता है कि लोग एक पवित्र ईश्वर के सामने दोषी हैं। लोगों ने उसकी आज्ञा की अवहेलना की और उससे अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की। वह पाप है, और यह अनाज्ञाकारिता के कारण परमेश्वर के जीवन से अलग होने का परिणाम है।

यीशु हमें परमेश्वर के साथ एक मेल में वापस लाता है, और यह उसके देहधारण के साथ शुरू होता है जब ईश्वरत्व ने मनुष्यत्व के साथ कर एकआत्मक्ता लिया था। यीशु मसीह के बलिदान के कारण हमारा अंगीकार हमें परमेश्वर के साथ फिर से जोड़ देता है। हम परमेश्वर के अनुग्रह के कारण क्षमा का अनुभव करते हैं।

जितेन्द्र जीत सिंह, भूतपूर्व सिक्ख ग्रंथी और एंबेसडर फॉर क्राइस्ट के भूतपूर्व राष्ट्रीय प्रचारक, हरियाणा।

तिल की मिठाई को आग में फेंकने से एक व्यक्ति द्वारा पूरे वर्ष में किए गए पापों की प्रस्तुति होती है, और वे उनसे छुटकारा पा लेते हैं। यह कार्य साल दर साल किया जाता है और जीवन भर चलता रहता है।

परन्तु ऐसा उनके साथ नहीं है जो मसीह यीशु में अपना विश्वास रखते हैं। मसीह ने हमारे पापों को अपने ऊपर ले लिया है और हमें “हमेशा और सदैव के लिए एक ही बार में” स्वतंत्र कर दिया है। इसे हर साल, बार-बार नहीं दोहराया जाता है। मसीह प्रत्येक व्यक्ति को एक स्वैच्छिक अधिकार देता है। यदि हम अपने पापों से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो हमें मसीह के पास जाने के लिए चुनाव करना होगा। और यह सिर्फ एक बार का काम है। इसे दोहराने की जरूरत नहीं है। इसके लिए कोई शर्त नहीं है, और अगर हम अन्यथा चुनते हैं, तो हम अपने पापों का बोझ अनंत काल तक ढोते रहते हैं।

संतार सिंह, वरिष्ठ पास्टर, खुश खबरी फैलोशिप, सिंगापुर। आप सिक्ख पैदा हुए थे, परन्तु बाद में एक मसीह विश्वासी बन गए और आपने सिंगापुर में असेंबली ऑफ गॉड बाइबल कॉलेज से अध्ययन किया। आपकी कलीसिया में विशेष रूप से पंजाबियों के लिए एक आराधना सभा चलाई जाती है।

पाप की सिक्ख समझ पाप की मसीही समझ से बहुत ज्यादा अलग है। सिक्ख यह नहीं मानते हैं कि उन्हें पाप विरासत में मिला है, जो कि मसीही विश्वास के विपरीत है, जो यह मानते हैं कि वे पाप में पैदा हुए हैं और आत्मिक रूप से मृत हैं। सिक्ख यह नहीं मानते कि उनका स्वभाव पापी है; उनका मानना है कि उनके कर्म उन्हें पापी बनाते हैं। मसीह विश्वास में, एक व्यक्ति इसलिए पापी नहीं है क्योंकि वह पाप करता है; वह पाप करता है क्योंकि वह पापी है। मनुष्य के भीतर जो है वह बाहर प्रकट होता है।

गुरु नानक देव जी, दस सिक्ख गुरुओं में से पहले गुरु और सिक्ख धर्म के संस्थापक, ने तीन स्तंभों (यानी कर्तव्यों) को औपचारिक रूप दिया था, जो कि उनके अनुयायियों को मुक्ति प्राप्त करने में मदद करते हैं: नाम जपो (ईश्वर का ध्यान करो और ईश्वर के नाम का जाप करो), किरत करो (कड़ी मेहनत और ईमानदारी से जीवन निर्वाह करो), और वंड छक्को (यानी भोजन और धन को एक साथ बाँटो और उपयोग करो)।

इफिसियों 2:8-9 में जो कुछ लिखा है, मसीह विश्वासी उस पर विश्वास करते हैं: “क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है – और यह तुम्हारी ओर से नहीं, यह परमेश्वर का दान है – न कर्मों के द्वारा, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे।” हम कर्मों में विश्वास नहीं करते; हम परमेश्वर के अनुग्रह और मसीह के पूरे किए कार्य में विश्वास करते हैं।

Editor’s note: What do you think of this translation? Want to see CT do more? Interested in helping us improve the quality and quantity? Share your feedback here.


You can also now follow our best articles on our Telegram channel. Come join us!

Our Latest

Evangelism and All That Jazz

In 1966, CT reported on church activities but also on LSD, The Beatles, and the war in Vietnam.

Why The Body Matters

Justin Ariel Bailey

Three books on ministry and church life to read this month.

Hark! The Boisterous Carolers Sing

Ann Harikeerthan

I grew up singing traditional English Christmas hymns. Then I went caroling with my church in India.

“Christian First, and Santa Next”

Even while wearing the red suit, pastors point people to Jesus.

How Pro-life Groups Help When a Baby’s Life Is Short

Adam McGinnis

Christian groups offer comfort and practical support for expectant families grappling with life-limiting illness.

The Russell Moore Show

A Reading of Luke 2

Voices across Christianity Today join together to read the Christmas story found in Luke 2.

The Bulletin

The Christmas Story

The CT Media voices you know and love present a special reading of the Christmas story.

My Top 5 Books on Christianity in East Asia

Insights on navigating shame-honor cultural dynamics and persecution in the region.

Apple PodcastsDown ArrowDown ArrowDown Arrowarrow_left_altLeft ArrowLeft ArrowRight ArrowRight ArrowRight Arrowarrow_up_altUp ArrowUp ArrowAvailable at Amazoncaret-downCloseCloseEmailEmailExpandExpandExternalExternalFacebookfacebook-squareGiftGiftGooglegoogleGoogle KeephamburgerInstagraminstagram-squareLinkLinklinkedin-squareListenListenListenChristianity TodayCT Creative Studio Logologo_orgMegaphoneMenuMenupausePinterestPlayPlayPocketPodcastRSSRSSSaveSaveSaveSearchSearchsearchSpotifyStitcherTelegramTable of ContentsTable of Contentstwitter-squareWhatsAppXYouTubeYouTube